वांछित मन्त्र चुनें

आ रोद॑सी अपृण॒दा स्व॑र्म॒हज्जा॒तं यदे॑नम॒पसो॒ अधा॑रयन्। सो अ॑ध्व॒राय॒ परि॑ णीयते क॒विरत्यो॒ न वाज॑सातये॒ चनो॑हितः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā rodasī apṛṇad ā svar mahaj jātaṁ yad enam apaso adhārayan | so adhvarāya pari ṇīyate kavir atyo na vājasātaye canohitaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒पृ॒ण॒त्। आ। स्वः॑। म॒हत्। जा॒तम्। यत्। ए॒न॒म्। अ॒पसः॑। अधा॑रयन्। सः। अ॒ध्व॒राय॑। परि॑। नी॒य॒ते॒। क॒विः। अत्यः॑। न। वाज॑ऽसातये। चनः॑ऽहितः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:2» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अग्नि विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानों ! आप जैसे (चनोहितः) अन्न के लिये हित करानेवाला (वाजसातये) अन्नादि पदार्थों के विभाग करने को (अस्यः) जैसे व्याप्तिशील अर्थात् चालों में व्याप्ति रखनेवाला अश्व (न) वैसे (कविः) चञ्चल देखा जाए ऐसा अग्नि (रोदसी) आकाश और पृथिवी (आ, अपृणत्) अच्छेप्रकार पूर्ण करता है वा (यत्) जिस (महत्) बहुत (जातम्) उत्पन्न हुए (स्वः) सुख को (आ) अच्छे प्रकार परिपूर्ण करता है (सः) वह (अध्वराय) अहिंसारूप यज्ञ के लिये (परिणीयते) प्राप्त किया जाता है वैसे (एनम्) उक्त अग्नि को (अपसः) कर्म से (अधारयन्) धारण करें ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्युत् रूप अग्नि सूर्य पृथिवी उनमें स्थित और अन्तरिक्षस्थ पदार्थों को प्रकाशित करता है, यदि वह यानों में प्रयुक्त किया जाय तो सबका हितकारी हो ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निविषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वांसो भवन्तो यथायं चनोहितो वाजसातयेऽत्यो न कविरग्नी रोदसी आपृणद्यन्महज्जातं स्वरापृणत्सोऽध्वराय परिणीयते तथैनमपसोऽधारयन् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अपृणत्) पूरयति (आ) (स्वः) सुखम् (महत्) (जातम्) (यत्) (एनम्) (अपसः) कर्मणः (अधारयन्) धारयन्तु (सः) (अध्वराय) अहिंसारूपयज्ञाय (परि) सर्वतः (नीयते) प्राप्यते (कविः) क्रान्तदर्शनः (अत्यः) व्याप्तिशीलोऽश्वः (न) इव (वाजसातये) अन्नादीनां संविभागाय (चनोहितः) अन्नाय हितकारी ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो विद्युद्रूपोऽग्निः सूर्यं पृथिवीन्तत्स्थानन्तरिक्षस्थांश्च प्रकाशयति यदि स यानेषु प्रयुज्येत तर्हि सर्वेषां हितकारी स्यात् ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो विद्युतरूपी अग्नी, सूर्य, पृथ्वी व अंतरिक्षातील पदार्थांना प्रकाशित करतो तो जर यानात प्रयुक्त केला तर सर्वांचे हित होईल. ॥ ७ ॥